top of page

है बातें बहुत सी

  • Writer: etaoppvtltd
    etaoppvtltd
  • Dec 31, 2020
  • 1 min read

है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

स्वर साँसों की,कानों में, शोर सी लगती है। एेसी विरह तन्हाई में,रहूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

जाने किस मोड़ पर, खो गये, वो साथ चले थे, जो राही। अनजान शहर है उन्हें, ढूंढूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

मंजिल खुशियों की कभी, थी ये शिखर। आया यहाँ तक, जिन राहों से। उन राहों का, पता याद नहीं। वापस उन राहों से, जाऊँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

दूरियाँ बहुत हो गयी है, आदि और अंत में। और है तेज हो गई वक्त की आँधियों, ऐसे में हवाई मार्ग से भी, इन दूरियों को, नापूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

हूँ अकेला खड़ा इस शीर्ष पर, जो पैर डगमगाये तो, गर्त में जाने से खुद को, संभालूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

रिश्तों में है पैदा हो गई ईक खाईं सी, खुद ही खुद में ऐसे लिपटा बाहर आ, इन खाईंयों को प्यार से, पाटूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे?

है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे? ये दर्द है अंतर की, सहूँ कैसे? है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे

Please like comment and share

Comments


bottom of page