आज दुःशासन है ,फैला चहुँ ओर ...., उठने ना देंगे नजर भी उसकी अब तेरी ओर ,... भरी सभा में लूटे इज्जत अब उसकी औकात नहीं, .. कब बदली थी नीयत उसकी जो अब बदलेगी ...., अब शकुनि का चाल भी आएगा उसके काम नहीं ..., विपती से संपति आए ये अब इस कृष्ण का विचार नहीं .., धर्मराज अब मौन से मान जाये हर बात ... ऐसा होने ना दूँगा अब कोई भी घात ....., "है सौगंध पंचाली कृष्ण को तेरे राखी की ....," ना धर्मराज को जुए के बुलावे पर जाने दूँगा ...., ना दुःशासन को किसी हालत में नजर तुम पर उठाने दूँगा, आ जाये नाम तुम्हारा दुर्योधन के लवो पर, ये अपकर्म अब कभी ना होने दूँगा,... बढ़ जाये हाथ अब दुर्योधन, दुःशासन का तुम तक, ये अधर्म अब कभी ना होने दूँगा,..... भरी सभा में अस्मिता की रक्षा को चमत्कार दिखाना पड़े, ऐसा कोई भी संयोग ना अब बनने दूँगा,.... है ये 'कृष्ण की रक्षावचन' पंचाली तुमसे, किसी भी हालात में ये वचन ना टूटने दूँगा... । "*%HAPPY RAKSHABANDHAN%*"