काश्मीर था सुलगता वर्षों से, चलो बात तुम्हारी मान लिए, पर अब ये लपटें उठने लगीं, बतलाओ तुम ऐसा क्या किये। हरियाणा धधकता दिखता है, तुम चुप्पी साधे बैठे हो, देश प्रलय में डुब रहा है, तुम्हें आगे बढ़ता दिखता है, साहब ये तो बतलाओ कि, तुम किस नींद से जागे हो। बहुत हो चुकी मन की बातें, अब तो सुन ले जन की बातें, क्या यही सबब है तुमको, इतना प्यार करने का, ढ़ोंगीयों के आतंक से मजबूर हैं खुद के घर में ही बैठ जीने को, क्या अकड़ सी लग गयी है, तेरे छप्पन इंची सीने को।
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