top of page

यही सच्चा लगता है ।

  • Writer: etaoppvtltd
    etaoppvtltd
  • Dec 31, 2020
  • 1 min read

मैं नहीं आईना देखुंगी, मुझे ये झूठा लगता है। संवरी हूँ मैं तेरी खातीर संवरीया, तेरे नीले नयनों के दर्पन में खुद को निहारूंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

मैं नहीं रंग दुनिया के देखुंगी, जिन रंगों को ये दिखलाती है, सब का सब मुझे झूठा लगता है । रंगी हूँ मैं तेरी रंग में रंगरसीया, तेरी ही रंगों को निहारूंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

मैं नहीं राह दुनिया के जाऊंगीं, जो राह ये बतलाती है, मुझे वो झूठा लगता है । चली मैं तेरी राह मेरे राही, तेरी ही राहो पर दौरूंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

मैं नहीं रीत दुनिया के मानुँगीं, जो रीत ये सिखलाती है, मुझे वो झूठा लगता है । चढ़ा रीत तेरा मुझ पर मेरे रीतिया, तेरे रीतों को अपनाऊंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

मैं नहीं नजारे दुनिया के देखुंगी, सब का सब मुझे झूठा लगता है । मेरी नजरों को तेरा रुप नजारा लगे, तेरे रूप को ही निहारूंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

मैं नहीं आईना देखुंगी, मुझे ये झूठा लगता है । संवरी हूँ मैं तेरी खातीर संवरीया, तेरे नीले नयनों के दर्पन में खुद को निहारूंगीं, मुझे अब बस, यही सच्चा लगता है ।।

Comments


bottom of page