कई दिनों से मिली नहीं उससे नज़र,
कई दिनों से देख रहा उसकी डगर,
भाई बैठा था दुवारें पर गया जब,
मैं था उसके घर, लेने उसकी ख़बर।
मन बड़ा बेचैन सा रहता है,
पढ़ तो लिया होगा उसने ख़त मेरा,
जान तो लिया होगा क्या है मेरा ख्याल,
कैसे अब जानु मैं क्या है उसके विचार।
दिन ये गुजरता नहीं है जल्दी - जल्दी,
ना रातें तेज़ी से कटती हैं, जब दिया पत्री उसे,
इंतज़ार में हूँ, क्या होगा उसका जबाब इसी,
उधेड़बुन में हो गया हूँ शून्य में स्थिर।
कब मिलेगी उसके नजरों से नज़रें,
कब वो मुस्कुरा कर चेहरा छुपाएगी,
कब वो पलके झुकाकर शर्माएगी,
कब वो सर हिलाकर करेगी इज़हार।
कब वो स्वीकारोत्तर ख़त देगी,
किताबों के पन्ने मोड़ उसमे रखकर,
कब उसके एहसासों के लफ्ज़ाभाव को पढ़,
इतराऊंगा पहले प्यार की पहली पत्री पाऊँगा।
ये मनोभावों का उत्तर जानने की बेकरारी खो गयी है,
वो पहले प्रेम की पहली चिट्ठी खो गयी है.....
वो चिट्ठी खो गयी है.....
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