नित भोर भए, निज गौअन को ले,
गोकुल से वृंदावन जायो .....
वृंदावन में गौअन के चरावन एक बहाना हौ ,
औ वहाँ नित जाके रास रचायो.....
लुक छुप के सबको भरमाना हौ ,
औ माखन चोरी का खेल खेलायो.....
बैठ अटारी पर माखन खावत
जो कभी केहुके पकड़ में आना हौ ,
अपनी भोली भावुक बातों से
सबको सबमें हरदम झूठलायो.....
साँझ से एक पहर पहले,
चढ़ कदम की डाली पर वंशी बजाना हौ,
सबके तन का थकन और पीड़ा मिटा,
सबका मन अपने धुन से लुभायो.....
ज्ञानार्जन का समय आया तो गुरूकुल जा,
गुरू - शिष्य वाली परम्परा निभायो.....
सहपाठियों के संग अपनो सा रिश्ता बना,
मित्र कैसे बनावें एसो पाठ पढ़ायो.....
यूँ तो सब कला और ज्ञान का स्वस्रोत हौ,
पाकर दंड गुरु से गुरू मान सीखायो.....
गुरू माँ ने गुरू दक्षिणा में
पुत्रों का जीवन दान माँगा,
तो यम से पुत्रों का प्राण ला,
गुरू दक्षिणा चुकायो.....
गुरू ने दिया जो ज्ञान उसे,
जग कल्याण मे लगा,
धर्म स्थापना मे हाथ बटायो.....
परहित में जीवन अपना लगा,
ज्ञान का मूल्य जता,
गुरू का सत्कार कैसो हो दिखायो.....
प्रेम करन को गए तो प्रेम किए ऐसो की,
प्रेम ही जग में पूजित करायो.....
मिल सके ना भले उम्र भर को,
पर अंतकाल तक प्रेम की पहचान बनायो.....
ना हान कियो निज का प्रेम में,
पर उसका प्रेम में मान बढ़ायो.....
प्रेम करें तो करें कैसो,
जग को प्रेम का पाठ पढ़ायो.....
प्रेम को मंजिल मिली ना भले ही,
पर निज प्रेम को प्रेम का कीर्तिमान बनायो.....
युद्ध किया तो उसमे भी सीख दिखायो ,
पूर्ण प्रयास पर्यन्त भी मिले ना विजय तो,
रण छोड़ देने बुराई नहीं,
खुद ही इसे अपना कर, रणछोड़ कहलायो.....
मुह फ़ेर लिया जब पार्थ ने रण मे तो,
गीता का ग्यान देकर संग - संग उसके,
जग को भी कर्म ही पूजा का पाठ पढ़ायो.....
परमार्थ हेतु स्वधर्म से हटना पड़े तो हट जाओ,
स्वजन से द्वंद करने पड़े कर जाओ,
करुणा ही धर्म का आधार है,
प्रेम ही धर्म का मूल है,धर्म स्थापना हेतु
प्रेम, करुणा, सत्य संग युद्ध का मार्ग दिखलायो.....
कर्म की राह तिहारो, तुम बस कर्म को निहारो,
जब नियति होगी फल तोहे मिल जायबो,
फल की चिंता छोड़, कर्म पर बढ़ते रहो,
कर्म ही पूजा का अमर ज्ञान सुझायो.....
जन्म मरण आत्मा का परमात्मा से मिलन
हेतु एक चक्र हौ, परिवर्तन जिसके मूल मे बसयो,
परिवर्तन ही अटल ये चक्र समझाने के लिए,
सब लीला कार्य पूर्ण कर निज प्राण त्यागयो.....
बाल गोविंद ने लीला दिखलायो.....
किशोर कान्हा ने रास लीला रचायो.....
युवा कृष्ण ने मित्रता और प्रेम पढ़ायो.....
प्रौढ़ माधव ने धर्म और शासन सिखलायो.....
गुरू वासुदेव गीता का ज्ञान बतलायो.....
एक ही जीवन में कृष्ण ने,
पूरा जीवन-चरित्र दिखलायो.....
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