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देखा ना जाता

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कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे? छोड़ वो पुराने सारे गिले - शिकवे, आ पहले गले तो मिल हमसे।। कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे?

'पापा की टूटी चप्पल और फटे एड़ियां, अब और, देखी ना जाती है हमसे। बच्चों को सब कुछ भूलने की बीमारी है, अब और खुद को सजा दी ना जाती हमसे ।।' कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे?

इश्क़, मुहब्बत, प्रेम, प्यार,और स्नेह, सब बोलने के तरीक़े है, नाम है अलग-अलग, रूप है अलग-अलग, पर सब एक ही बीमारी है। ख़ुद को छोड़ किसी से भी हो औरों से, दवा, दुआ,माया,दया कुछ काम नहीं आते, सबकी इसमे यही लाचारी है।। कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे?

जैसे सब घिर जाते हैं, हम भी घिर गये इसमें । वादे, इरादे, कसमें, और वफा, इन सबके हद मे..... पर निकला ना जाता,. ख्वाहिशों, ख्वाबों, अधजगी रातों और यादों, इन घेरों के ज़द से हमसे।। कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे?

माँ-बाप, बहन - भाई, सबमें बंँटें  है मोह मेरे, प्रेमिका, प्रियतमा और प्रिया सबमें है प्रेम मेरे, बेटी - बेटा, सबसे है स्नेह मेरे, सब रिश्तों - नातों से है प्यार मुझे। पर सबसे सबकी मतलब कि यारी है, सबसे सबकी मतलब कि ही मारा - मारी है, ना हो हैरान जो तेरी है, वही मेरी भी लाचारी है, *पर सब जानकर भी ये निभाना यही तो जिम्मेदारी है * जिम्मेदारियों का बोझ और नहीं उठता तुझसे, अब और, देखा ना जाता है हमसे।।

कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे? कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे? छोड़ वो पुराने सारे गिले - शिकवे, आ पहले गले तो मिल हमसे।। कहना तो है बहुत कुछ तुमसे, क्या-क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुझसे?

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