माँ,थकती नहीं कभी, अपने सन्तान के लिए, सन्तान, भले ही थक जायें, अपने माँ के लिए,
आज वक्त नहीं निकलता है, विस्तर पर पड़ी उस जान के लिए । जिसके पास वक्त ही वक्त था तब, विस्तर पर पड़े, इस जान के लिए ।
बस इतनी सी अरमान के लिए, रात गिले में न गुजरे, खुद गिले में सो लिया ।
आज गिली जिसकी चारपाई भी है, बिन शिकवा है लेटी, इस अन्त समय में, होठों पर मुस्कान लिए।
माँ, थकती नहीं कभी, अपने सन्तान के लिए, सन्तान,भले ही थक जायें, अपने माँ के लिए ।