चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं.....
जहां ना तूँ हिन्दू था ना मैं मुस्लिम, मेरे अब्बा तुझे बाबू कहते, और तेरे बाबा मुझे बबुनी कहते, दोनों हम दोनों को पुचकारते ऐसे, जैसे दोनों ही दोनों के बच्चे हैं। देख ना वो बचपन के दिन कितने अच्छे हैं... चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं........
तूँ अब्बू के गोद में सो जाता, वो ना हिलते, जिससे तूँ जागे, मैं बाबा के घुटनों पर झुला झूल चुप हो जाती, वो दर्द बिसरा भी झुलाते, जिससे मैं फिर ना रोती, कितनी प्यारी यादें हैं, जो आँखों में बसे हैं। देख ना वो बचपन के दिन कितने अच्छे हैं.... चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं........
तेरे घर की होली में, सबसे पहले टीका मुझको लगता, मेरे घर की ईद मे, फ़िर पहले काजल तुझको लगती, मिठाई का पहला टुकड़ा, मेरे होंठों से लगता, और सेवईयों की पहली कटोरी, तेरे मुह से जूठी होती, कितने प्यार से त्योहारों में गले लगते हैं। देख ना वो बचपन के दिन कितने अच्छे हैं.... चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं........
प्रेम हमारा तब भी था, सब कितने खुश होते थे, मियां-विवि के खेल खेलते, सब उसमे शरीक होते थे , ना जाने क्या हो गया अब....... क्यूँ बाबा अब मुझे बबुनी नहीं मानते, क्यूँ अब्बू तुमको बाबू नहीं कहते.., जो हमारे प्रेम पर मरते थे, क्यूँ उस पर अब नफ़रत करते हैं। देख ना वो बचपन के दिन कितने अच्छे हैं.... चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं........
चल ना... बचपन में वापस चलते हैं, उन दिनों में फिर से मिलते हैं........
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